Thursday, 26 November 2015

036--धन्यवाद के पात्र हैं(Hindi Poem-l/034/00637)





मेला सबसे बड़ा लगा था ,
महका दिया चमन शहर का,
 रंगबिरगे फूलों का आना,
 झूम उठे पल; हर पहर का I1I
 ठहर -2 सा शहर गया था,
 खो गया इतना खेल -2 में,
 प्रेम शान्ति का महान सन्देश ,
शहर पा गया खेल -2 में I2I
किसी ने जम के ताकत झौकी ,
किसी ने धावक बन दौड़ा ,
किसी ने ऊंची कूदी दीवार ,
किसी ने  उपलब्धि से जोड़ा I3I
रिकार्ड बनाये ,रिकार्ड तोड़े,
 जोश में होश नहीं खोया,
 बनारस की धाक के आगे ,
जगा शहर जो था सोया I4I
 सुबह सांय हमने देखा ,
महनत सबका साथी बनी ,
सोते ,जगते ,चलते-2,
 मिले सफलता बात ठनी I5I
सोने का वक्त ना था ,
अद्भूत अलग नजारा ,
सहयोग मिला इतना ज्यादा,
 इकदूजे का बने सहारा I6I
धन्यवाद के  पात्र हैं वे,सब ,
दिन रात लगे कल को बनाने ,
संरक्षण उत्तम सर्वोत्तम,
 सूरज चमका फिजा बताने I7I
 संचालन आयोजन गठबन्धन ,
सहयोग समर्पण  अर्पण ,
एमएसआई दीप जला ,
राह दिखाया इनका दर्पण I8I
आज के दौर में भी,
 सितारे चमकते हैं ,
राह दिखाते, सफल बनाते ,
ताज भी इनसे सजते हैं I9I
धन्यवाद के  पात्र हैं वे सब ,
नमन है उनको हर पल ,
अपना सबकुछ दाब लगाते ,
आज सौंपते ,बनते कल I10I


( अर्चना & राज)

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