Wednesday, 7 October 2015

000023---यह जग सराय मुसाफिरखाना (Hindi Poem)

हमारे सहयोगी बल्देव शास्त्रीजी द्वारा लिखित उनकी कविता जो यथार्थ से हमें जोड़ते हुए आंखे खोलती है
हम फालतू में लड़ते झगड़ते हैं---------------?

यह जग सराय मुसाफिरखाना 
इसमें लुभाने की कोशिश ना करना 
आये अगर रै ऩ बिता लो,
कब्जा जमाने की कोशिश न करना
हमसे पहले यहां लाखों आये,
खाये, कमाये, सिधाये ,
वे भी रहे, ना गये साथ लेकर,
तुम भी ले जाने की कोशिश न करना,
यह दुनिया है अमानत प्रुभु की ,
नहीं है किसी की ,न पहले किसी की ,
तू अपनी बनाने की कोशिश न करना, 
ग़र राजा हो रानी बड़ा सेठ दानी 
सेवक मुल्लापंडित या ज्ञानी 
जो आया उसको जाना. पड़ेगा.
ममता बढ़ाने की कोशिश न करना,

चौरासी के चक्कर में गोते लगाकर,
मुश्किल से नर्तन (आदमी) का चोला मिला ! ना,
बड़े भाग से मौका मिला है,
मौका गवाँ ने की कोशिश न करना ,
यह आकाश धरती अगिग्न जल हवा है,
शास्त्रीजी कहें जिसने पैदा किया है,
उस को भुलानेकी कोशिश ना करना

( बल्देव शास्त्रीजी)

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