Wednesday, 19 August 2015

000021----मेरा मन मछुआरे जैसा (Hindi Poem)

हमारेमित्र कविराज जयप्रकाश द्वारा
मेरा मन मछुआरे जैसा
स्मृतियाँ
रंगीन मछलियाँ
मेरा मन
मछुआरे जैसा
परी कथाएँ
चन्दामामा
सबकुछ, बिसर गये
पश्चिम वाली
चकाचौंध
सपने बिखर गये
विस्मृतियां
धूमिल आकृतियाँ
मेरा मन
अधियारें जैसा
चले जहाँ से
वहीं आ गये
केवल युग बदले
अंधे मोड़ों के
परिपथ पर
बार-बार. फिसले
विकृतियाँ
पाशविक हरकतें
मेरा मन
अंगारे जैसा
बड़ी सलीबों
टंगी जिन्दगी
बिछड़ गई. सदियां
मिनरल वाटर
स्पर्धा में
पिछड़ गई. नदियाँ
सस्कृतियाँ
बरगद की छाया
मेरा मन
बंजारे जैसा
(कविराज जयप्रकाश)

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