Friday, 9 February 2018

58---जो जीवन से हार मानता

आज डायट के बच्चे उदास थे उनको समर्पित एक कविता
Az-5/2106

जो जीवन से हार मानता
वे कैसे बढ़ पाएंगे 
बड़ी-बड़ी चट्टाने मिलती 
कैसे वे चढ़ पाएंगे

जो सोता वो खोता है
जीवन भर फिर रोता है 
हंसी खुशी से बढ़ते जाओ 
काम भी अपना करते जाओ 
कदम चूमेगी मंजिल तेरी
दुनिया को दिखलाएंगे

जो जीवन से हार मानता
वे कैसे बढ़ पाएंगे 
बड़ी-बड़ी चट्टाने मिलती 
कैसे वे चढ़ पाएंगे

सब ने हमें सिखाया है 
अपनों ने भी बताया है
दुनिया सोती वे जगते हैं 
काम भी अपना वे करते हैं 
हुआ सवेरा जग बदले
किस्मत सबकी वे बदले
जहां भी कहता उनको महान 
रीति नई जो दिखिलाएंगे

जो जीवन से हार मानता
वे कैसे बढ़ पाएंगे 
बड़ी-बड़ी चट्टाने मिलती 
कैसे वे चढ़ पाएंगे

जिनके दिल साफ ना होते
सभी समझते ना कुछ कहते 
सावधान सब हो जाते हैं
छोड़ पीछे बढ़ जाते हैं 
अपना जीवन कुछ करना है
हमको आगे बढ़ना है
अपनी ताकत के दम पे
तस्वीर को हम बदलेंगे

जो जीवन से हार मानता
वे कैसे बढ़ पाएंगे 
बड़ी-बड़ी चट्टाने मिलती 
कैसे वे चढ़ पाएंगे


पीछे कभी नहीं हटेंगे 
पीछे कभी नहीं हटेंगे
तकदीर नई लिख देंगे
वादा अपनों से करेंगे 
आंसू कभी ना आने देंगे 
हम भी ड्यूटी खूब करेगें
देश को अच्छा बनाएंगे 
दुनिया को बताएंगे 
कभी पीछे जाएंगे
जो जीवन से हार मानता
वे कैसे बढ़ पाएंगे 
बड़ी-बड़ी चट्टाने मिलती 
कैसे वे चढ़ पाएंगे 
(अर्चना राज)

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